भारत की शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा: एक विश्लेषण

भारत की शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा: एक विश्लेषण

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भारत की शिक्षा व्यवस्था का विकास और विस्तार स्वतंत्रता के बाद से लगातार चल रहा है, लेकिन इसके बावजूद आज भी यह व्यवस्था कई गंभीर समस्याओं का सामना कर रही है। भारत मे कोचिंग सेंटर (JEE, NEET, UPSC, etc ) के नाम पर एक अरबो खरबो का नजायज उद्योग खड़ा हो गया है… बेईमानी का… बचपन को छीनने का… नियमों कानूनों को सरे आम बेचने का..इन नाजायज महंगे सेंट्रस ने मध्यम वर्ग, गरीब वर्ग . को उच्च शिक्षा से वंचित करने का बीड़ा  उठा रखा है….

Anup Kumar Bharat Vikas Parishad, Tohana

शिक्षा व्यवस्था का अवलोकन:

भारत की शिक्षा व्यवस्था का मूल ढांचा तीन स्तरीय है: प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, और उच्च शिक्षा। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की जिम्मेदारी मुख्य रूप से राज्य सरकारों की होती है, जबकि उच्च शिक्षा केंद्र सरकार के अधीन होती है। इसके अलावा, स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा दोनों में सरकारी और निजी संस्थानों का एक विस्तृत नेटवर्क कार्यरत है। आजकल कक्षा 7/8 का बच्चा जिसे स्कूली शिक्षा की जरूरत होती है कम्पटीशन एग्जाम के नाम पर उसे महंगे कोचिंग सेंटर के हवाले कर दिया जाता है  ताकि अन्य बच्चो से आगे निकल सके…

एक  कोचिंग सेंटर की वार्षिक शिक्षा शुल्क हॉस्टल सहित 4 से 5 लाख होता है 2 वर्ष की कोचिंग का अनुमानित खर्च 9 से 10 लाख आ जाता है  और हर मध्यम एवं गरीब परिवार इतना खर्च  करने का सामर्थ्य नहीं रखता, और कोई कर्ज इत्यादि उठा कर कर भी दे तो यह जरूरी नहीं की वह बच्चा सफल हो ही जायेगा ।

क्योंकि इन सेंट्रस मे केवल उन्ही बच्चो पे ज्यादा फोकस किया जाता है जो  बच्चे पहले से ही उस विषय मे अग्रणी होते हैँ । इन सेंटरस का परिजनों के साथ एक बड़ा धोखा और भी किया जा रहा है की जब इन परीक्षाओं के रिजल्ट घोषित होते हैँ तब सफल परीक्षार्थियों के चित्र व संख्या सेंट्रस की सफलता दिखाने के लिए जारी किये जाते हैँ.. यह आंकड़ा कभी नहीं बताया जाता की सेंट्रस के कितने कुल विद्यार्थियों मे से ये सफल  विद्यार्थी की संख्या है अर्थ सेंटरस के प्रति 100 विद्यार्थियों के पीछे सफल विद्यार्थी कितने है.. यह आंकड़ा निश्चित रूप से चौकाने वाला होगा | हर वर्ष दबाव, स्ट्रेस के चलते कितने बच्चे आत्महत्या कर जाते हैँ……

“विकसित देशो मे 5/6 वर्ष तक तो उसे साधरण स्कूल तक भी नही भेजा जाता और यहाँ होड़ मची है ।“

कितनी हास्यपद बात है की स्कूलों मे शिक्षा के लिए मान्यता लेने के लिए स्कूलों पर सीबीएससी, विभिन्न राज्य शिक्षा बोर्ड के कई तरह के नियम क़ानून, मानक लागु होते हैँ  जैसे -स्कूल का क्षेत्रफल इतना हो, खेलकूद का स्थान, हवादार कमरे, बच्चो की सुरक्षा आदि आदि | जबकि इन्ही महंगे प्रोफेशनल सेंट्रस मे भी स्कूली बच्चे पढ़ते हैँ वहाँ उनकी सुरक्षा के, स्वास्थ्य के भविष्य के कोई मानक लागु नही होते। …..

“दिल्ली के राजेंदर नगर में बेसमेंट में बने UPSC कोचिंग सेंटर तीन छात्रों की मौत, इन प्रोफेशनल सेंटर्स  के लालच, शिक्षा व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार, सिस्टम की नाकामी का ताज़ा उदहारण है..” 

UPSC DEATH DELHI BY EDUCATION SYSTEM - ANOOP KUMAR TOHANA

कोटा , दिल्ली, मोहाली, चंडीगढ़ जैसे महानगरों मे चलने वाले लूट सेंट्रर्स एक शिक्षा माफिया के रूप मे खूब तरक्की कर रहे हैँ.. परिजन अच्छे भविष्य की, बड़े बड़े पैकेज की अंधी दौड़ मे मजबूरी मे या अज्ञानता के कारण इनका हिस्सा बन रहे हैँ और शायद उनके पास इस कोई और रास्ता भी नही….

इन राज्यों मे किसी भी पार्टी की सरकार हो कभी कोई सख्त कार्यवाही नही हुई, देश का कोई नेता पक्ष अथवा विपक्ष आज तक इस नवीन उच्च माफिया के खिलाफ न तो संसद मे और नही सांसद के बाहर इसे उठा पाया, देश की मैन स्ट्रीम मीडिया इसे मुद्दा नही बना पाई, कारण सम्भवतः वही …….

shiksha mafiya article by anup kumar tohana

मुख्य समस्याएँ:

शिक्षा की असमानता: भारत में शिक्षा की असमानता एक प्रमुख समस्या है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में, अमीर और गरीब परिवारों के बीच शिक्षा की गुणवत्ता में बड़ा अंतर है। 

गुणवत्ता की कमी: शिक्षा की गुणवत्ता में कमी एक गंभीर चिंता का विषय है। शिक्षक प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता, और शैक्षिक सामग्री की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है। कई बार स्कूलों में केवल औपचारिकता के लिए शिक्षा दी जाती है

भ्रष्टाचार और प्रशासनिक मुद्दे: शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार और प्रशासनिक कमी भी एक बड़ी समस्या है। स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता, अनियमितता और भ्रष्टाचार के कारण शिक्षा का स्तर प्रभावित होता है। 

आर्थिक बाधाएँ: शिक्षा के क्षेत्र में कई परिवार आर्थिक कारणों से अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते। स्कूल फीस, किताबें, और अन्य शैक्षिक सामग्री की लागत परिवारों के लिए एक बड़ा बोझ बन जाती है।

तकनीकी और डिजिटल अंतर: आज की डिजिटल युग में भी, भारत में तकनीकी और डिजिटल शिक्षा के मामले में बड़ा अंतर है। ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में डिजिटल उपकरणों और इंटरनेट की कमी के कारण छात्र आधुनिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।

समाधान के उपाय:

शिक्षा की पहुंच में सुधार: शिक्षा की पहुंच को सुधारने के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में, स्कूलों की संख्या बढ़ानी होगी। सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों के सहयोग से यह कार्य संभव हो सकता है।

गुणवत्ता में सुधार: शिक्षक प्रशिक्षण को बेहतर बनाने और पाठ्यक्रम को अद्यतन करने की आवश्यकता है। पाठ्यक्रम को ऐसा बनाना चाहिए जो छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान और समस्या समाधान की क्षमताओं में सक्षम बनाए।

भ्रष्टाचार पर अंकुश: शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए, प्रशासनिक सुधार और पारदर्शिता पर ध्यान देना होगा। इसके लिए तकनीकी उपायों को अपनाना और निगरानी तंत्र को मजबूत करना जरूरी है।

आर्थिक सहायता: आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों के लिए वित्तीय सहायता और छात्रवृत्तियों की व्यवस्था को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इससे शिक्षा के प्रति परिवारों की सहभागिता बढ़ेगी।

तकनीकी और डिजिटल शिक्षा: डिजिटल शिक्षा की पहुंच को बढ़ाने के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, इंटरनेट और डिजिटल उपकरणों की उपलब्धता में सुधार किया जाना चाहिए। इसके साथ ही, डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।

निष्कर्ष:

भारत की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए व्यापक और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज के सभी हिस्सों को मिलकर शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए काम करना होगा।

इन सेंटरस मे मिलने वाली कोचिंग नियमित स्कूली शिक्षा का हिस्सा बनना चाहिए.,  कोचिंग सेंट्रस को मान्यता आदि देने के लिए कोई स्वायत बोर्ड का गठन होना चाहिए ताकि इन पर इनकी गुणवता पर निरंतर निगरानी हो, बच्चों की संख्या के अनुसार की भवन का आकर हो, इन सेंटरस मे कक्षा 10 ( कक्षा शिक्षा विभाग को तय करना चाहिए ) से कम बच्चो का एडमिशन अवैध हो, इन सेंट्रस मे एडमिशन आधार कार्ड के आधार पे हो ताकि दो जगह चल रहे फर्जी एडमिशन पे रोक लग सके ….

हालांकि उपरोक्त विषय से बहुत से लोग असहज या असहमत हो सकते हैँ अपने कारणों के कारण परन्तु शिक्षा को बचाने के लिए, बचपन को बचाने के लिए यह विषय जन मुद्दा बनना चाहिए | यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएं और सभी हितधारकों की सहभागिता सुनिश्चित की जाए, तो भारत की शिक्षा व्यवस्था को एक नई दिशा और मजबूती मिल सकती है। – अनूप कुमार, भारत विकास परिषद्, टोहाना

(डिजिटल टोहाना विचार प्रकट करने का मंच है, लेखक के विचार निजी हैं)

पाठकों के लिए विशेष : – यदि आप भी समसामयिक मुद्दों पर अपनी राय रखना चाहते हैं तो हमें admin@digitaltohana.com या digitaltohana@gmail.com पर भेज सकते हैं ……

3 thoughts on “भारत की शिक्षा व्यवस्था की दुर्दशा: एक विश्लेषण”

  1. आज की शिक्षा व्यवस्था की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत की है आपने श्रीमान जी

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