क्या है सार्वजानिक क्षेत्र के उपक्रम जिसके सुभाष बराला चेयरमैन बने हैं, पढ़ें

जैसे ही खबर आई की सुभाष बराला को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का चेयरमैन बनाया गया है तब से बराला समर्थकों में ख़ुशी की लहर है और वे लड्डू बांटकर व ढोल बजवाकर अपनी ख़ुशी का इजहार कर रहे हैं ….

लेकिन इसी खबर के बीच शहर में एक प्रश्न ने जन्म ले लिया है की आखिर ये सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम होते क्या हैं, आम जनता को इस शब्द को लेकर दुविधा है,

बराला किस विभाग के चेयरमैन बने हैं ?

लोग टोहाना में आए चेयरमैन पद को लेकर उत्साहित तो हैं, लेकिन एक दुसरे से ये भी पूछ रहे हैं की भैया ये सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम आखिर कौन सा डिपार्टमेंट है जिसमे सुभाष बराला चेयरमैन बने हैं ??

तो डिजिटल टोहाना ग्रुप आपको बता रहा है इस विभाग की पूरी जानकारी

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम का अर्थ

“ऐसे व्यावसायिक इकाइयाँ जिनका स्वामित्व, प्रबंधन और नियंत्रण, केन्द्र सरकार, राज्य या स्थानीय सरकार के द्वारा किया जाता है उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों अथवा सार्वजनिक उपक्रमों के नाम से जाना जाता है।“

भारत में सरकारी उपक्रमों को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम यानि public sector undertaking (PSU) या public sector enterprise  कहते हैं। इन उपक्रमों का स्वामी भारत सरकार या कोई राज्य सरकार (जैसे हरियाणा सरकार ), या दोनों होते हैं। इसके लिये आवश्यक है कि आधे से अधिक अंश (शेयर) सरकार के पास हों |

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का वर्गीकरण

  1. केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्रक उपक्रम
  2. सार्वजनिक क्षेत्रक बैंक
  3. राज्यों के सार्वजनिक क्षेत्रक उपक्रम

केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्रक उपक्रमों का प्रशासन भारत सरकार के भारी उद्योग एवं लोक उद्यम मंत्रालय द्वारा किया जाता है तथा राज्य सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का संचालन सरकार स्वयं अपने मंत्रालय या चेयरमैन आदि बनाकर करती है |

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की आवश्यकता क्यों है

निजी कम्पनियां ऐसे क्षेत्रों में उद्योग लगाने हेतु रूचि नहीं लेते थे जिसमें, भारी पूंजी का निवेश हो और लाभ कम हो, जैसे-मशीन निर्माण, आधारभूत ढ़ांचा, जमीन से तेल निकलना, आदि इसी तरह निजी उद्यमी उन क्षेत्रों को ही प्राथमिकता देते हैं जहां संसाधन सुलभता से उपलब्ध हों जैसे- कच्चे माल, श्रमिक, विद्युत, बाजार आदि।

इसके परिणाम स्वरूप क्षे़त्रीय असंतुलन बढ़ता है, इसलिए सरकार ने निजी उपक्रमों के व्यावसायिक कार्यकलापों को नियंत्रित करते हुए व्यवसाय में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेना प्रारंभ किया, और सार्वजनिक उदयमों जैसे, कोयला उद्योग तेल उद्योग मशीन-निमार्ण, इस्पात उत्पादन, वित्त और बैंकिंग, बीमा, रेलवे इत्यादि उद्योगो की स्थापना सरकार द्वारा की गई है।

इन इकाइयों पर न केवल केन्द्र सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय सरकारों का स्वामित्व रहता है, वरन् इनका प्रबंधन और नियंत्रण भी इनके द्वारा ही किया जाता है। ये इकाइयां सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के नाम से जानी जाती हैं।

सार्वजनिक उपक्रमों की विशेषताएँ

  1. सरकारी स्वामित्व एवं प्रबन्ध-सार्वजनिक उपक्रमों का स्वामित्व और प्रबन्ध केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार या स्थानीय सरकार के पास होता है तथा उन्हीं के द्वारा इनका प्रबन्ध किया जाता है। सार्वजनिक उपक्रमों पर या तो सरकार का पूर्ण स्वामित्व रहता है या उन पर सरकारी और निजी उद्योगपतियों तथा जनता का स्वामित्व संयुक्त रूप से होता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय थर्मल पॉवर कार्पोरेशन एक औद्योगिक संगठन है, जिसकी स्थापना केन्द्रीय सरकार द्वारा की गई और इसकी अंश पूँजी का भाग जनता द्वारा उपलब्ध कराया गया है। ऐसी ही स्थिति तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड (ओ एन जी सी) की है।
  2. सरकारी कोष से वित्तीय सहायता- सार्वजनिक उपक्रमों को उनकी पूंजी सरकारी कोष से मिलती है, और सरकार को उनकी पूंजी के लिए प्रावधान अपने बजट में करना पड़ता है।
  3. लोक कल्याण- सार्वजनिक उपक्रमों का लक्ष्य लाभ कमाना नहीं अपितु सेवाओं और वस्तुओं को उचित दामों पर उपलब्ध कराना होता हैं।
  4. सार्वजनिक उपयोगी सेवाए- सार्वजनिक उपक्रम लोक उपयोगी सेवाओं जैसे परिवहन, बिजली, दूरसंचार आदि को उपलब्ध कराते हैं।
  5. सार्वजनिक जवाबदेही- सार्वजनिक उपक्रम लोक नीतियों से शासित होते हैं जिन्हें सरकार बनाती है तथा यह विधायिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
  6. अत्यधिक औपचारिकताएँ- सरकारी नियम एवं विनियम सार्वजनिक उद्यमों को उनके कार्यों में अनेकों औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए बाध्य करते हैं। इसी के फलस्वरूप प्रबन्धन का कार्य बहुत संवेदनशील और बोझिल बन जाता है।

निजी क्षेत्र के उपक्रमों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बीच अन्तर

निजी क्षेत्र से हमारा अभिप्राय आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों का निजी तौर पर किसी एक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा चलाने से है।

ये व्यक्ति लाभ कमाने के लिए निजी क्षेत्र में व्यवसाय करने को प्राथमिकता देते हैं। दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र का अर्थ, सार्वजनिक प्रभुत्व के द्वारा आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों का संचालन करना है। सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित उद्यमों का मुख्य उद्देश्य लोक हित को सुरक्षा प्रदान करना होता है।

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों  के सगंठनों के प्रकार

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के सगंठन के तीन स्वरूप होते है।

1. विभागीय उपक्रम,

2. सार्वजनिक निगम; और

3. सरकारी कम्पनी।

  1. संगठन के विभागीय उपक्रम स्वरूप का प्रयोग मुख्यत: आवश्यक सेवाओं जैसे, रेलवे, डाक सेवाएँ । सरकार जनता के हितों के विचार से ऐसे संगठनों पर नियंत्रण रखती है।
  2. सार्वजनिक निगम  से अभिप्राय संसद अथवा राज्य विधानमण्डल द्वारा किसी विशेष अधिनियम द्वारा गठन से है जैसे राज्य व्यापार निगम, इत्यादि।
  3. सरकारी कम्पनी- सरकारी कम्पनी- से अभिप्राय उस कम्पनी से है जिसकी 51 प्रतिशत अथवा इससे अधिक हिस्सेदारी सरकार के पास हो। यह कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत होती है |

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लाभ

  1. सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति- सरकार का इन उपक्रमों पर पूरा नियंत्रण होता है। इस प्रकार यह अपने सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति कर सकता है। उदाहरण के लिए, दूर-दराज इलाकों में खुलने वाले डाकघरों, कार्यक्रमों का रेडियों एवं टेलीविजन पर प्रसारण, जिनसे लोगों का सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक विकास होता है,
  2. विधायिका के प्रति उत्तरदायी- संसद में विभागीय उपक्रमों के कार्य विधि के विषय में प्रश्न पूछे जाते हैं जिनका उत्तर संबधित मंत्री द्वारा जनता को संतुष्ट करने के लिए दिया जाता है। इस प्रकार वे ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकते जिससे जनता के किसी विशेष समूह के हितों को हानि पहॅुंचे।
  3. आर्थिक गतिविधियों पर नियंत्रण- यह सरकार की विशिष्ट आर्थिक गतिविधियों पर नियंत्रण स्थापित करने में मदद करता है तथा सामाजिक और आर्थिक नीतियों के निर्माण में एक उपकरण के रूप में कार्य कर सकता है। 
  4. सरकारी राजस्व में योगदान- सरकार से सम्बन्धित विभागीय उपक्रमों में यदि कोई अधिशेष हो तो इससे सरकार की आय में बढ़ोत्तरी होती है। इसी प्रकार यदि इसमें कोई कमी है तो इसे सरकार द्वारा पूरा किया जाता है। 
  5. कोष के दुरूपयोग होने का कम अवसर- चूंकि इस प्रकार के उपक्रम बजटीय, लेखांकन एवं अंकेक्षण नियंत्रण के लिए उत्तरदायी हैं इसलिए इनके द्वारा कोष के दुरूपयोग होने की सम्भावना कम हो जाती है। 

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की सीमाएं

  1. अधिकारी वर्ग का प्रभाव- सरकारी नियंत्रण के कारण, एक विभागीय उपक्रम नौकरशाही की सभी बुराइयों से ग्रसित होते हैं। उदाहरण के लिए, प्रत्येक खर्च के लिए सरकारी अनुमति प्राप्त करनी होती है, कर्मचारियों की नियुक्ति और उनकी पदोन्नति पर सरकार का नियन्त्रण होता है। इन्हीं कारणों की वजह से महत्वपूर्ण निर्णय लेने में देरी हो जाती है, कर्मचारियों को एकदम पदोन्नति और दण्ड नहीं दिया जा सकता है। इन्हीं कारणों की वजह से विभागीय उपक्रमों के कार्य के रास्ते में समस्यायें खड़ी हो जाती हैं। 
  2. व्यावसायिक विशेषज्ञों की कमी- प्रशासनिक अधिकारी को जो विभागीय उपक्रमों के मामलों का प्रबंधन करते है।, सामान्यत: व्यवसाय का अनुभव नही होता है और न ही वे इस क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं। अत: इनका प्रबन्धन पेशेवर तरीके से नहीं होता तथा इनकी कमियों के कारण सार्वजनिक कोषों की अत्यधिक बर्बादी होती है।
  3. लचीलेपन में कमी- एक सफल व्यवसाय के लिए लचीलापन का होना आवश्यक होता है ताकि समय अनुसार मांग में परिवर्तन को पूर्ण किया जा सके। लेकिन इन उपक्रमों में लचीलेपन की कमी के कारण इसकी नीतियों में तुरंत परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
  4. अकुशल कार्यप्रणाली- इस प्रकार के संगठनों को अपने अदक्ष कर्मचारियों और उनकी दशा सुधारने के लिए पर्याप्त प्रेरणात्मकों की कमी के कारण अकुशलता से जूझना पड़ता है।

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का महत्व

हमारे देश में सभी उपक्रम, सार्वजनिक उपक्रम नहीं हैं। हमारे देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था है और हमारी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए निजी क्षे़त्रों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रम भी सहयोग देते है।

केवल कुछ ही चुनिन्दा क्षेत्र हैं जहॉं पर सरकार अपने उपक्रमों की स्थापना अर्थव्यवस्था के संतुलित विकास के लिए और समाज कल्याण को बढ़ावा देने के लिए करती है।

ऐसी अनेक जगहें हैं जिनमें पूंजी के भारी-भरकम निवेश की आवश्यकता है लेकिन लाभ की मात्रा या तो कम है या इसे लम्बी अवधि के बाद प्राप्त किया जा सकता है। चूंकि बिजली के उत्पादन और आपूर्ति, मशीनों के निर्माण, बांधों के निर्माण आदि में ज्यादा समय लगता है, निजी व्यापारी इन क्षेत्रों में अपना व्यवसाय स्थापित करने से कतराते है।

इसलिए सार्वजनिक हितों को दृष्टि में रखते हुए इन क्षेत्रों का अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इसीलिए इन उपक्रमों की स्थापना और संचालन सरकार द्वारा किया जाता है।

सुभाष बराला को कितनी ताकत मिली

जैसा की हमने ऊपर पढ़ा की जनता के हित को देखते हुए सरकार को बहुत से निजी क्षेत्र के काम भी करने पड़ते हैं जैसे बिजली बोर्ड की स्थापना, हरियाणा की यूनिवर्सिटी, निगम बोर्ड आदि की स्थापना |

इसलिए ऐसे सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों का चेयरमैन बनना एक बहुत बड़ी बात और बड़ी उपलब्धि है, इसलिए राजनीति के जानकार इसे बराला की एक और लम्बी छलांग बता रहे हैं,

फ़िलहाल तो टोहाना में ख़ुशी की लहर है ……. टोहाना को ताकत मिली

डिजिटल टोहाना टीम की तरफ से भी टोहाना की जनता को व सुभाष बराला जी को इस उपलब्धि पर हार्दिक बधाई ….

इस पोस्ट के विषय में कमेन्ट करने में संकोच न करें …..

4 thoughts on “क्या है सार्वजानिक क्षेत्र के उपक्रम जिसके सुभाष बराला चेयरमैन बने हैं, पढ़ें”

  1. विस्तृत व वणर्नात्मक जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!

Comments are closed.